aadika_hindi-sahitya
वास्तविक काल विभाजन
आदिकाल – 1000ई से 1350 तक
भक्तिकाल – 1350 से 1650 तक
रीतिकाल – 1650 से 1850 तक
आधुनिक काल – 1850 से अद्यतन
कालविभाजन का आधार –
आदिकाल-हिंदी साहित्य – किसी भी काल का विभाजन विभिन्न परिस्थितयो को आधार बनाकर किया जा सकता है। जिनमे मुख्य रूप से जो प्रवृतिया पाई जाती है उनमें ग्रन्थो में विद्यमान विषयवस्तु प्रवृतियां वाद तथा व्यक्तिगत प्रयासो का आधार बनाया जाता है। किसी भी काल का प्रारम्भ तथा समापन एकाएक नही हो सकता है इसलिए लगभग आधी शदी को उसी काल के अन्तर्गत गिना जाता है। काल विभाजन के प्रत्येक प्रयासकर्ता ने अपने ढंग से कालनिर्धारण में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष योगदान दिया है। गार्सी द तासी ने जिन कवियो का उल्लेख किया है उनके जीवन वृत से ऐसे साक्ष्य मिले है जो कालनिर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते है। जार्ज ग्रियर्सन ने जो धार्मिक तथा दरबारी परम्परा का वर्णन किया है यह भी कही न कही काल निर्धारण का आधार तय करती है। रीतिकालीनग्रन्थो में आचार्यत्व का जो रूप शुक्ल ने प्रस्तुत किया है वह तो स्वयं ही काल का स्परूप तैयार करता है। शुक्ल ने जिन बारह रचनाओ को आधार बनाकर आदिकाल का निर्धारण किया है वे समस्त रचनाए कहीं न कही कुछ विशेष तथ्यो को छोडती है जिनसे काल निर्धारण में कुछ मदद मिलती है।
आदिकाल-हिंदी साहित्य
आदिकाल के विभिन्न नाम-
आचार्य रामचन्द्र ष्षुल्क – वीरगाथां काल
हजारी प्रसाद द्विवेदी – आदिकाल
महावीर प्रसाद द्विवेदी – बीजवपनकाल
राहुल सांकुत्यायन – सिद्ध सामन्त युग
डा. रामकुमार वर्मा – सन्धिकाल,चारणकाल
मिश्रबन्धु – प्रारम्भिक काल
विश्वनाथप्रसाद मिश्र – वीरकाल
डा. वासुदेव सिंह तथा डा. शम्भूनाथ सिंह – उद्भवकाल
रामखिलावन पाण्डेय – संक्रमणकाल
गणपतिचन्द्र – प्रारम्भिक काल
चन्द्रधर शर्मा गुलेरी – पुरानी हिन्दी
डा. रामकुमार वर्मा – सन्धिकाल तथा चारणकाल ।
रमाशंकर रसाल – बाल्यावस्थाकाल ।
जार्ज ग्रियर्सन – चारणकाल ।
आदिकाल
आदिकाल की प्रवृत्तियोंवर्तियों का साहित्य
– आदिकालीन साहित्य मे बहुत सी विशिष्ट प्रवृतियां पनपी जो कालान्तर में उस काल की मुख्य पहचन बनी। महापण्डित राहुल सांकृत्यायन ने स्वयंभू को हिन्दी का प्रथम कवि तथा उनकी कृति पउम चरिउ को प्रथम काव्य माना है। वही डा. काशीप्रसाद जायसवाल सिद्व सहरपा को प्रथम कवि मानते है।
आदिकाल को वीर गाथा काल भी कहा जाता था क्योकि इसके वीर रस पर अधिक साहित्यलेखन हुआ है। इस काल मे रासो साहित्य लिखा गया जो वीर रस पर ही आधारित है । डाॅ. गणपति चन्द्र गुप्त के अनुसार भरतेश्वर द्वारा लिखित ’बाहुबलि रास’ हिन्दी का प्रथम रास काव्य है इसी प्रकार पृथ्वीराज रासो वीर इस प्रधान हिन्दी का प्रथम ऐतिहासिक महाकाव्य है । इसके रचनाकार चन्दरवरदाई है । आदिकाल की मुख्य बोली खडी बोली रही है
आदिकाल-हिंदी साहित्य
आदिकाल की महत्वपूर्ण रचनाए-
भरतेश्वरबाहुबलि रास – शालिभ्रद्र पृथ्वीराज रासो – चन्दरबरदाई
बुद्धिरास – शालिभद्र वीसलदेव रासोे – नरपति नाह्ल
जीवदया रास – आसगु
आदिकाल-हिंदी साहित्य – नाथ साहित्य- प्रवर्तक – मत्स्येन्द्रनाथ, गोरक्षनाथ, । नाथो का सम्बन्ध शिव से है । इनकी साधना में हठयोग का विशिष्ट महत्व है । ह का अर्थ सूर्य तथा ठ का अर्थ चन्द्रमा है अतः इनकी साधना सूर्योदय से चन्द्रदर्शन तक चलती है । शिव से सम्बद्व होने के कारण नाथ सम्प्रदाय में श्रृंगार का वर्णन मिलता है परन्तु पाॅंच मकारो का इन्होने पूर्ण निषेध किया है । गोरखनाथ के बाद बालनाथ का स्थान महत्वपूर्ण रहा है ।
संख्या – नौ । हजारीप्रसाद द्विवेदी ने नाथो की संख्या 76 बताई है । प्रमुख- शिव । स्थान – गोरखपुर लेकिन शिष्य परम्परा राजस्थान तथा पंजाब में रही । गोरक्ष सिद्वान्त संग्रह के अनुसार 9 नाथो के नाम है –
गोरक्षनाथ जलन्धरनाथ भीमनाथ जडभरतनाथ नागार्जुननाथ हरिष्चन्द्रनाथ चर्पटनाथ मलियार्जुननाथ सत्यनाथ आदि ।
आदिकाल-हिंदी साहित्य – सिद्ध साहित्य – प्रवर्तक – बौद्ध धर्म की दो शाखाओ हीनयान तथा वज्रयान मे से बज्रयान के अनुयायी सिद्ध कहलाए। ये अपने कठोर सिद्वान्तो के कारण जाने जाते थे । इनकी संख्या 84 थी । केन्द्र श्री पर्वत था । ये वैदिक कर्मकाण्ड के विरोधी थे । इन्होने धर्म तथा आध्यात्म की आड में नारीभोग किया ।
सर्वाधिक महत्वपूर्ण रचना -मूलकल्प तथा मन्जूश्री ।
रचनाए- दोहाकोष, – सरहपा 769 ई. । डोम्बिगीतिका – डोम्भिपा । , चर्यापद – शबरपा । चर्याभेद – लूईपा । पाहुड दोहा – कण्हपा । समय- 7वी’ 8वी शताब्दी ।
आदिकाल-हिंदी साहित्य – खुशरो साहित्य- प्रवर्तक – अमीर खुशरो । वास्तविक नाम अब्दुल हसन । जन्म – 1253 ई पटियाली गाॅव जिला एटा यू.पी. । मृत्यु – 1325 दिल्ली में । इन्हे खडी बोली का आदिकवि कहा जाता है ।
रचनाए- गजल, रूबाईयाॅ, पहेलियाॅ, मुकरिया,ढकोसले ।
खालिकबारी ’शब्दकोष’ इनकी प्रथम रचना है। इसमें प्रथम बार हिन्दवी शब्द का प्रयोग किया गया है। प्रमुख रचना – पर्यायकोश जो तुर्की हिन्दी अरबी फारसी का पर्यायकोश है।
आदिकालीन साहित्य की प्रवृतिया – लगभग 300 सालो के प्रारम्भिक इतिहास में मुख्य रूप से वीरता की झलक पनपी । इसीलिए इसे वीरगाथाकाल कहा गया। इसमें वीरता का वर्णन तो मिलता है परन्तु वह अतिशयोक्तिपूर्ण है । अतः इस काल में प्रामाणिकता का अभाव देखने को मिला । श्रृंगारपरक मुक्तक रचनाओ का बाहुल्य । सामाजिक जीवन की उपेक्षा तथा चरितकाव्यो की प्रधानता । रूढियो का प्रयोग । राष्ट्रीयता का अभाव ।
आदिकाल के स्मरणीय तथ्य –
आदिकालीन कवि विद्यापति को मैथिल का कोकिल कहा जाता है ।
आदिकाल का प्रथम कवि सरहपा को माना गया है । गणपतिचन्द्र शालिभद्र को प्रथम कवि मानते है । शिवसिंग सेगंर के अनुसार पुष्पकवि प्रथम है ।
आदिकालीन साहित्य में डिंगल तथा पिंगल दोनो भाषाओ की उत्पति मानी जाती है। आदिकालीन चारणकाव्य में अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन मिलता है जिसकी प्रामाणिकता का कोई प्रमाण नही मिलता ।
संपूर्ण हिंदी साहित्य देखें https://www.youtube.com/watch?v=dUD-ok2krQE