हिन्दी साहित्य का इतिहास
हिन्दी साहित्य का इतिहास ’लेखन परम्परा’
हिन्दी भाषा का प्रारम्भ- लगभग 1000 ई.
हिन्दी साहित्य की लेखन परम्परा का विकास – 1़9वी शताब्दी
हिन्दी साहित्य के इतिहास के प्रथम लेेखक- गार्सी द तासी ’फेंच विद्वान रहे ।
गार्सी द तासी द्वारा लिखित हिन्दी साहित्य इतिहास का प्रथम ग्रन्थ – ’इस्त्वार-द ला लित्रेव्यूर ऐन्दुई ऐन्दुस्तानी’ प्रकाशन – दो भागो मे 1839, 1847 ई. । इसमें 666 उर्दु तथा 72 हिन्दी कवियो का परिचय है।
इन्होने कालविभाजन का प्रयास नही किया ।’
शिवसिंह सेंगर द्वारा रचित ’षिवसिह सरोज’ हिन्दी साहित्य इतिहास की एक महत्वपूर्ण इति ’प्रकाशन 1883 ई.। इन्होने भी कालविभाजन का प्रयास नही किया ।’
हिन्दी साहित्य का इतिहास – सर जार्ज ग्रियर्सन द्वारा रचित ’ द माडर्न वर्नेक्यूलर लिटरेचर आॅफ हिन्दुस्तान ’ मे हिन्दी साहित्य लेखन की विभिन्न परिस्थियो का वर्णन। इसका प्रकाशन एशियाटिक सोसायटी आफ बंगाल की पत्रिका के रूप में हुआ था
प्रकाशन 1888 ई.। इन्होने लगभग 1000 लोगो के जीवनवृत को प्रस्तुत किया तथा प्रथम बार कालविभाजन का प्रयास किया । यह 11 खण्डो में प्रकाशित है। इसका हिन्दी अनुवाद डा. किशोरीलाल गुप्त द्वारा किया गया जिसका शीर्षक था हिन्दी साहित्य का प्रथम इतिहास ।
हिन्दी साहित्य का इतिहास – तीन मिश्र बन्धुओ ; श्यामबिहारी शुकदेवबिहारी गणेशबिहारी द्ध द्वारा रचित ’मिश्र बन्धु विनोद ’ हिन्दी साहित्य के इतिहास की एक अद्वितीय कृति है । ’ प्रकाशन- तीन भागो का – 1913, चैथे भाग का 1914’ ; 1934 (चर्चा करे ) । यह चार भागाो तथा 8 खण्डो में प्रकाशित है । इस कृति में लगभग 5000 लोगो के व्यक्तित्व तथा कृतित्व को एक साथ प्रस्तुत किया गया ।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा सम्पादित व लिखित पुस्तक ’हिन्दी साहित्य का इतिहास ’ हिन्दी की अति महत्वपूर्ण कृति है । प्रकाशन – 1929 ई.। यह आंकडो पर आधारित महत्वपूर्ण कृति मानी गई । ’
डा. रामकुमार वर्मा ने हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास कृति के माध्यम से अपना योगदान दिया जिसका प्रकाशन वर्ष 1938 रहा ।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने तीन पुस्तको के माध्यम से हिन्दी साहित्य लेखन परम्परा मे विशिष्ट योगदान दिया है ये तीन पुस्तके है –
1.हिन्दी साहित्य की भूमिका
2.हिन्दी साहित्य:उद्भव और विकास
3.हिन्दी साहित्य का आदिकाल
हिन्दी साहित्य का इतिहास – नागरिणी प्रचारिणी सभा कांसी द्वारा संपादित हिन्दी साहित्य का वृहद- इतिहास’ नामक पुस्तक ने भी हिन्दी के विकास मे भरपूर योगदान दिया है । इसका प्रकाशन 16 खण्डो में हुआ । प्रथम 15 खण्डो का प्रकाशन 1957 में तथा 16वे खण्ड का प्रकाषन 1960 में हुआ । हिन्दी साहित्य के इतिहास में इन कृतियो का भी विशिष्ट योगदान रहा –
मिश्रबन्धुआं की हिन्दी नवरत्न – 1910
प.रामनरेश त्रिपाठी की कविता कौमुदी 1917
वियोगी हरि की ब्रजमाधुरी 1923
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