हिन्दी भाषा का उद्भव एवं विकास
हिन्दी भाषा का उद्भव एवं विकास – विद्वानो का एक वर्ग यह स्वीकार करता है कि हिन्दी भाषा का उद्भव संस्कृत भाषा से हुआ है जबकि दूसरा वर्ग इसे प्राकृत भाषा से उत्पन्न मानता है। हिन्दी भाषा का प्रारम्भ 1000 ई. से माना जाता है। इस समय तक यह साहित्य के योग्य भाषा मानी जाने लगी थी अतः इसका बोलचाल का रूप तो सम्भवतः 775 के आस पास ही प्रचलित था क्योकि बोलचाल की भाषा को साहित्यिक भाषा बनने मे इतना समय लगना स्वाभाविक है डा. पीताम्बर दत बड़थ्वाल ने इसके लिए कुलयमाला कथा का प्रमाण दिया है। यदि वर्तमान मे प्रचलित समस्त मतो का निषकर्ष रूप माने तो हिन्दी का विकास क्रम इस प्रकार है –
संस्कृत- पाली – प्राकृत – अपभ्रंश
अपभ्रंश कालान्तर में कई भागो में बट गई जैसे –
1 ब्राचड अपभ्रंश – इससे सिन्धी का उद्भव हुआ ।
2 खश अपभ्रंश – इससे पहाडी का उद्भव हुआ ।
3 पैशाची अपभ्रंष – पंजाबी तथा लंहदा का उद्भव हुआ ।
4 मराठी अपभ्रंश – इससे मराठी का उद्भव हुआ ।
5 शौरसेनी अपभ्रंश – इससे पश्चिमी हिन्दी राजस्थानी गुजराती आदि का उद्भव हुआ ।
6 अर्धमागधी अपभ्रंष – इससे पूर्वी हिन्दी बंगाली बिहारी उडिया अवधि बघेली छतीसगढी आदि ।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिन्दी साहित्य का प्रारम्भ स. 1050 से माना है। अधिकतर विद्वान इसी मत को स्वीकार करते है। डा. धीरेन्द्र वर्मा ने हिन्दी के विकास काल को तीन चरणो मे विभक्त किया है। –
1.प्राचीनकाल – ’1000 से 1500ई.तक’
2.मध्यकाल – ’1500 से 1800ई. तक’
3.आधुनिक काल – 1800 से अद्यतन’
हिन्दी भाषा का उद्भव एवं विकास – प्राचीन काल मे हिन्दी भाषा के कई रूप देखने को मिले जैसेः रासो साहित्य मे डिंगल ’ राजस्थानी मिश्रित ’ पिगंल ’ब्रज मिश्रित’ भाषा का बाहुल्य रहा सन्त कवियो की भाषा सधुक्कडी रही खुसरो साहित्य मे खड़ी बोली का प्रयोग मिलता है विद्यापति की पदावली मे मैथिली की झलक मिलती है वही अन्य कवियो की रचनाओ मे दक्खिनी हिन्दी का प्रयोग भी दिखाई देता है। अतः यह कहना सार्थक होगा कि प्राचीन काल मे हिन्दी के डिंगल, पिंगल, सधुक्कडी, खडी बोली, मैथिली तथा दक्खिनी हिन्दी आदि रूप प्रचलित थे।
हिन्दी भाषा का उद्भव एवं विकास – हिंदी साहित्य का इतिहास
पश्चिमी हिन्दी
1.खड़ी बोली – गढ़ मेरठ तथा बोलचाल का क्षेत्र देहरादून , सहारनपुर आदि । मूल नाम कौरवी बोली । अन्य नाम सरहिन्दी हिन्दुस्तानी
वर्नाक्यूलर आदि । सर्वाधिक लेखन अमीर खुसरो ने किया । गप्प पहेलिया मुरकिया इसी भाषा में लिखे गए । यह हकार बाहुल्य है । हिन्दी में खडी बोली का प्रथम महाकाव्य हरिऔध द्वारा लिखित प्रियप्रवास है ।
सर्वप्रथम इसमें जैन कवि हरिषेण में पद्मपुराण का भावानुवाद किया ।
सदलमिश्र कृत नसिकेतोपाख्यान खडी बोली की महत्वपूर्ण कृति है ।
2.बं्रजभाषा – गढ मथुरा तथा बोेेलचाल का क्षेत्र – बरेली, हाथरस , बंदायु आदि। प्राचीन नाम ब्रजबुली । ब्रज का शाब्दिक अर्थ – चारागाह । महत्वपूर्ण कृति विट्ठलनाथकृत श्रृंगाररसमण्डल । श्रुतिमिश्र की वेतालपच्चीसी भी श्रृंगार रस की अद्वितीय कृति है ।इस बोली के प्रमुख कवियो में सूरदास रसखान घनानन्द आदि है ं। यह रकार बाहुल्य है तथा है के स्थान पर र का प्रयोग होता है ।
3.कन्नौजी – गढ़ इटावा तथा बोलचाल का क्षेत्र – मैनपुरी पीलीभीत, शाहाजहापुर ।
4.बुन्देली – बुन्देल खण्ड तथा बोलचाल का क्षेत्र झाॅसी , सागर, हमीेर पुर आदि। यह अनुस्वांर बाहुल्य बोली है ।
5.बाॅगरू – गढ़ हरियाणा तथा दिल्ली एवं आसपास का क्षेत्र । यह ण बाहुल्य है तथा न को ण बोला जाता है ।
हिन्दी भाषा का उद्भव एवं विकास
पूर्वी हिन्दी –
1.छतीसगढी – बिलासनुर तथा एवं रायपुर का क्षेत्र । यह बिहारी के सबसे निकट है । यह अवधि के बाद दूसरी महत्वपूर्ण बोली है ।
2.अवधी – कानपुर तथा लखनउ, रायबरेली एवं फैजाबाद का क्षेत्र । यह पूर्वी हिन्दी की सर्वाधिक बोली जाने वाली है ।अन्य नाम है
3.बेसवाडी कौसली पुरबिया ।
प्रमुख ग्रन्थ – तुलसीकृत – रामचरितमानस । मलिक मुहम्मदकृत – पद्मावत महाकाव्य ं। प्रमुख कवि – मुल्ला दाउद मंझन कुतुबन ।
इसमे शब्दो के बीच में इ तथा उ का प्रयोग होता है । जैसे – पईसे ।
4.बधेली – बखेलखण्ड तथा रीवा, सतना एवं नागौद का क्षेत्र ।
पैशाची अपभ्रंश से दो भाषाए निकली है -पंजाबी तथा लहंदा । दोनो का क्षेत्र पूरा पंजाब है । पंजाबी की लिपि गुरूमुखी है ।
खश अपभ्रंश से पहाडी भाषा निकली है ।
पहाडी
कुमायुंनी – कुमाउॅ क्षेत्र, रानीखेत, अल्मोड़ा तथा ेनैनीताल के आस पास
नेपाली – हिमाचल , शिमला एवं चम्बा का क्षेत्र
गढ़वाली – गढ़वाल क्षेत्र , बद्री नाथ एवं उतरकांशी का क्ष्ेा़़त्र ।
ब्राचड अपभ्रंष से सिन्धी की उत्पति हुई है । सिन्धी की दो लिपियां है । शारदा लिपि तथा फारसी लिपि । इसके प्रथम भाषी सिन्ध प्रदेश के आसपास थे । शाह लतीफ द्वारा लिखित रिसौला इसका महत्वपूर्ण ग्रन्थ है । यह नी बाहुल्य बोली है ं।
महाराष्टी अपभ्रंष – इससे मराठी भाषा निकली है । कोंकणी तमिल तेलुगु आदि इसकी कई उपबोलिया है ।
अधिक जानकारी के लिए देखे
हिंदी साहित्य का इतिहास – https://www.youtube.com/watch?v=dUD-ok2krQE
हिंदी भाषा का उद्धव एवं विकास –https://www.youtube.com/watch?v=X1zgD83UxQ4