अर्थशास्त्र-में-नारी-का-स्वरुप

अर्थशास्त्र में नारी का स्वरुप

कौटिल्य का अर्थशास्त्र एवं नारी

किसी भी समाज के संतुलित एवं स्वस्थ विकास के लिए यह जानना महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि उस समाज में स्त्रियों की परिस्थिति क्या है ? वे समाज की विभिन्न समस्याओं एवं अपने कर्त्तव्यों तथा दायित्वों के प्रति कितनी जागरूक हैं? क्योंकि समाज निर्माण के लिए स्त्री-पुरुष का होना आवश्यक है ? फिर भी स्त्री की परिस्थिति पर जब हम विचार करते हैं तो हमारे सामने अनेक प्रश्न होते हैं । कि किस युग की स्त्री पर विचार क रें। किस समाज व्यवस्था की बात करें? स्त्री की क्या दशा, परिस्थिति व भूमिका रही है या फिर वह कभी स्वतंत्र रही है या नहीं?
विश्व के सभी देशों में कमोबेश स्त्री की परिस्थिति एक जैसी ही रही है । समाज चाहे भारतीय हो या पश्चिमी पुरुष प्रधान समाज होने के कारण सदैव उनका ही बोलबाला रहा है । स्त्री समाज की जड़ चेतना ने उन्हें सदियों तक गुलाम की तरह जीवन यापन करने को विवश किया है। मानव समाज का इतिहास रहा है, जिसमें महिलाओं को सत्ता, प्रभुता व शक्ति से वंचित रखा गया है और स्त्रियों को पुरुषों के समकक्ष न आने देने की संरचनात्मक व सांस्कृतिक बाध्यताएँ बनाई गई, चाहे फिर कोई भी देश या काल रहा हो ।

प्रत्येक देश, काल, धर्म व जाति में स्त्री की परिस्थिति में सदैव उतारचढ़ाव रहा है । यूरोपीय देशों में भी महिलाओं की स्थिति बेहतर नहीं थी उन्हें मताधिकार से वंचित रखा गया, उन्हें दासों के समकक्ष रखा गया । सत्ता व शक्ति की प्राप्ति से स्त्री को वंचित रखा गया क्योंकि सत्ता व शक्ति के अवसर, परिस्थिति व पद घर के बाहर विद्यमान होता है लेकिन श्रम विभाजन इस प्रकार किया गया कि घरेलू कार्य स्त्री के हिस्से व बाहरी कार्यो को पुरुष द्वारा किया जायेगा। श्रम विभाजन की इस प्रक्रिया से पुरुषों का इन क्षेत्रों में संस्थागत व सांस्कृतिक मान्यताओं के आधार पर एकाधिकार हो गया ।

वैदिक काल से लेकर मध्यकाल तक समाज में स्त्रियों की परिस्थिति में परिणामात्मक परिवर्तन आये। वैदिक युग में भारतीय स्त्रियों की परिस्थिति अन्यसमाजों की तुलना में सम्मानीय थी । यहाँ तक की यूनान जो अपनी संस्कृति को अति प्राचीन होने का दावा करता है, वहाँ भी स्त्रियों की परिस्थिति अच्छी नहीं थी । स्त्री की परिस्थिति सभी समाजों में लगभग एक जैसी ही थी लेकिन वैदिक युग में भारतीय स्त्री की परिस्थिति अन्यसमाजों की तुलना में बहुत सम्मान जनक थी । पुरुषों के समान सभी अधिकार प्राप्त थे । मनुस्मृति ने तो यहाँ तक कहाँ था कि –
“जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते है। “
मनुस्मृति

चाणक्य-के-अनुसार-प्राचीन-नारी

लेकिन मनुस्मृति और कौटिल्य के अर्थशास्त्र के उद्देश्यों में काफी अन्तर रहा है। मनुस्मृति धार्मिक प्रेरणा के फलस्वरूप लिखी गई जिसका मुख्य लक्ष्य धार्मिक कार्यो की स्थापना करना है । ब्राह्मण और पुरोहित को पुनः सम्मान पूर्वक स्थापित करना जो बौद्ध और जैन धर्म से समाप्त हो रहा था जबकि ‘अर्थशास्त्र’ आर्थिक सिद्धान्तों एवं नियमों की पुस्तक है । हालांकि अर्थशास्त्र के केन्द्र में स्वतन्त्रता है लेकिन उसके चारों ओर सामाजिक विचारों का जाल बिछा हुआ है

। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में स्त्रियों को सम्पत्ति में अधिकार की बात करते है । जो स्त्री किसी न किसी रूप से दरिद्र हो, अन्न, वस्त्र और कपास, सन और जूट आदि को काटने का कार्य विधवाओं अंगहीन स्त्रियों, कन्याओं, संन्यासियों, सजायाफ्ता स्त्रियों, बूढ़ी दासियों और मंदिर की दासियों को भी कार्य देने की व्यवस्था की जाती थी और कार्यानुसार वेतन दिया जाता था । इस तरह कौटिल्य के अर्थशास्त्र में निम्न वर्ग की स्त्रियों, अनाथ, विधवा तथा जिन्हें कार्य की आवश्यकता है, इन पर विशेष ध्यान दिया गया है । कौटिल्य कालीन युग में स्त्री धन भी होता था जिसको स्त्री संकट काल में उपयोग कर सकती थी । स्त्री को पुनर्विवाह का अधिकार प्राप्त था । स्त्री को तलाक देने का अधिकार प्राप्त था बशर्ते उसका पति नीच, प्रवासी, राजद्रोहा, धर्महीन और नपुंसक हो । स्त्री के भरण-पोषण का दायित्व पति पर होता है ।

प्राचीन नारियाँ

पति का कर्तव्य है कि उसकी आवश्यकतानुसार भोजन, वस्त्र, व्यय आदि दे । कौटिल्य का कहना था कि स्त्रियों के साथ मधुर व्यवहार किया जाए जो वर्तमान संदर्भ में घरेलू कानून के अर्न्तगत आता है, कि स्त्री को किसी तरह अपमानित नहीं करें । स्त्रियों को घर से बाहर जाने की अनुमति नहीं थी किन्तु विशेष परिस्थितियों में घर से बाहर जा सकती थी ।
कौटिल्य ने अपने युग के दर्शन से हटाकर समाज को नये ढंग से विकसित करने की योजनाएँ दी । उनका आर्थिक मॉडल आज भी देश में किसी न किसी प्रकार से चल रहा है । काश धर्म के अंधविश्वासी और रूढ़िवादी परम्पराओं से हटकर यह देश कौटिल्य के अर्थशास्त्र के नियमों व सिद्धान्त के आधार पर आगे बढ़ता तो आज भारत की आर्थिक तस्बीर सोने की चिड़िया के रूप में होती और देश में स्त्रियों की स्थिति आज कहीं बेहतर होती ।

Modern nari

लेकिन यह कहा जा सकता है कि कौटिल्य का अर्थशास्त्र राजनीतिक समाजशास्त्र की पुस्तक है । इसके केन्द्र में राजनीति है क्योंकि कौटिल्य चंद्रगुप्त मौर्य को एक शक्तिशाली राजा बनाना चाहता था किन्तु उस केन्द्र बिन्दु के चारों और आर्थिक, सामाजिक विचारों की अनेक परिधियाँ है । अत: राजनीति के माध्यम से सामाजिक विषयों की व्याख्या की गई है वहीं स्त्री की स्थिति का भी वर्णन किया गया है । उसके अधिकरों और कर्त्तव्यों की भी विवेचना की गई है, पर इस शास्त्र में भी स्त्री पर बंधन है पुरुष समाज का, पति का, पिता का, किन्तु मनु की भाँति इसमें स्त्री पर इतना कठोर अंकुश नहीं लगाया गया है, पर वह आर्थिक रूप से पति या पुरुष की दासी ही थी ।

विविध नारी रूप
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